Hey guys I am back!
Here’s a story I wrote a long time ago….it is in hindi, but I will be posting its English translation pretty soon. Hope you like it!
रात के तीसरे पहर की बात थी लेकिन हवा में एक अलग मिठास थे कि अरे! यह क्या नित्य अपने बिस्तर परसो रहा है! मैं इस बात से अचंभित नहीं कि वह सो रहा है,परंतु इस बात से हूं क्योंकि सोते समय उसका चेहरा एक अलग सी असामान्य खुशी से खिला हुआ है. मुझे पता है क्यों! मैं उसकी डायरी जो हूंँ! वह मुझे सिम सिम बुलाता है. आपको लग रहा होगा, डायरी का भी भले ही कोई नाम रखता है, पर ना जाने क्यों उसने मेरा रख दिया. अब इस सिम सिम नाम का क्या मतलब है यह तो मुझे भी नहीं पता और ना ही उसने कभी इसका अर्थ मेरे अंदर लिखा. वैसे तो आप सोच रहे होंगे कि नित्य को सोते समय खुशी देखकर वैसे तो आप सोच रहे होंगे नित्य को नींद में खुश देख करवैसे तो आप सोच रहे होंगे कि नित्य को सोते समय खुशी देखकर वैसे तो आप सोच रहे होंगे नित्य को नींद में खुश देखकर मैं इतनी चौक क्यों गई. जानना है क्यों? तो फिर सुनते रहो!
अगर मैं आपको उसके बारे में बताऊं, तो नित्य एक काफी शरारती बच्चा है। अंदर से तो साफ दिल का है पर कभी उसके मुंह से शांत मीठी आवाज निकलती ही नहीं!
और तो और वे जब भी कुछ शांति से बोलने का प्रयास करें तो उसे बिल्कुल ना हो!
इसी कारणवश उसकी ज्यादातर मित्रों उसे रुठे रहते हैं। सिवाय रकुल और निरंजन के। उन्हेल तुम रकू और नीरू भी बुला सकते हो।
चलो पीछे चलते हैं। हां हां पीछे। आगे की तो पन्ने खाली है ना! चलो आज का दिन, दिनांक और मिल गया!
चलो पढ़ती हो आज स्कूल में एक बड़ा कार्यक्रम है और अध्यापिका ने नृत्य को उसे प्रस्तुत करने को कहा है उसने मेरे अंदर अपनी स्पीच लिखी तो है और मेरे अनुसार को तैयार है अपनी कक्षा के सामने जब अपनी कक्षा के सामने प्रस्तुति परीक्षण किया, तो सबको उसका बोलने का ढंग बिल्कुल ना भाया।
बेचारा नित्य कितनी कोशिश से उसने अपना आत्म बल बढ़ाया था। वह पीछे कोने में जाकर होने लगा। नीरू और रकू ने अध्यापिका जी को बुलाया।
अध्यापिका ने नृत्य को समझाया शांत मन से सोचे, प्रयास करें और बोली पर ध्यान दें तो वह अपनी इस उलझन से तुरंत बाहर जाएगा।
"अभी कार्यक्रम आरंभ होने में थोड़ा समय है, मेरे साथ आओ।" अध्यापिका ने उसे बोला।
अध्यापिका उसे विद्यालय के पीछे की तरफ जो उद्यान है वह ले गई। उसने मेरे अंदर लिखकर बताया है, कि वह काफी खूबसूरत जगह है। वहां फूल है और चारों दिशाओं में शांति है और हर जगह पेड़ों से भरी है।
वहां जाकर उसे एहसास हुआ कि शांति में कितनी मिठास है। उसे समझाया कि मीठा बोलने से सब कितने सकारात्मक हो जाते हैं, खुश हो जाते हैं।
वह थोड़ी देर वहां पर बैठा, सांस ली, अपने आंसू पोछे और जब मंच पर उसने अपनी स्पीच बोली तो सब देखते ही रह गए।
संत कबीर ने कहा है, "ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।"
अर्थात, इंसान को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो सुनने वाले के मन को बहुत अच्छी लगे। ऐसी भाषा दूसरे लोगों को तो सुख पहुँचाती ही है, इसके साथ खुद को भी बड़े आनंद का अनुभव होता है।
-aadya singh